"उसने मुझे तबाह किया उसके बावजूद, उससे दो-चार दिन भी मैँ नफ़रत न कर सका"
- अल्वी
अए अल्वी तू क्या खूब दिल को पढ़ता था,
क्या होता जरा इस मर्ज की भी दवा बता जाता !!
घर से निकले तो हो, सोचा भी किधर जाओगे हर तरफ़ तेज़ हवाएं हैं, बिखर जाओगे ।
-- निदा फाजली
गर ये सोंच परिंदा निकले घर से
तो क्या वो वापस लौट पायेगा !!!
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लेँ, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए!!!
-- निदा फाजली
दुसरों पे इनायत कर अए मुसाफिर अपने लिए कब तक चलेगा !!!
पागलों की न सुनो ए दुनिया वालों, कहीं तुम भी न अच्छे बन जाओ !!!
जिसकी जरुरत नहीं वो भी कर के देख ए मुसाफिर,
सफ़र का मजा तब और भी बढ़ जाएगा !!!
तू है पूरब मैं हूँ पश्चिम, लेकिन सूरज का आना जाना दोनों से हीं हैं !!!
क्या हुआ उन्हें जो दूर रह कर नब्ज सुन सकते थे,
उन्हें आज मेरी धड़कन समझ में ना आयी ।
हर बार उम्मीद किया करते हैं उनके चले जाने के बाद की वो आयेंगे,
काश अब वो लौट के ना आये, नहीं तो उम्मीद हीं करते करते मर जायेंगे ।
बहुत दिनों बाद, आज मेरे चेहरे पे हंसी आयी है,
यादों में जिनके खोया रहता था, आज खुद उनको मेरी याद आयी है।
जब से दूर होकर यादों में खोया उनके, तब से दुनिया की खबर न थी,
और आज जब याद किया खुद उन्होंने तो मुझे अपनी भी खबर न थी।
जब भी जी करे ओ मेहरबान हमें बुला लेना,
कोई बिता हुआ वक़्त नहीं जो लौट के ना आ सकूँ।
जब सताना हीं था मुझे, तो रूठने का बहाना क्यों किया,
इस झूठ के परदे को हटा कर, तुने मुझे रोने का बहाना क्यों दिया।
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