तुझ बिन, और भी मुश्किल है ये अंगारों भरी राहें
पर साथ अगर तू होती भी, तो कौन बड़ा मै चल पाता
आँखों में तेरे खोता मैं या पैरो को तेरे सहलाता
मयखाना जब हो साथ मेरे, मंदिर-मस्जिद किसको भाता
जो बुने थे सपने हमने, जो वादे किये थे मिल के
पाना है मुझे वो कैसे भी, खुद को हूँ अब उनमे पाता
जीने को पड़ा है सारा जीवन, मान ले ओ मेरे हमदम
बस ठहर जा दो पल को पगली, मै बस इतना समझाता
चाहूँ ये मै भी, तू हो हर पल मेरे ही संग
तेरी चुडीयों को खनकाता, तेरी बातों में रम जाता
तेरी जुल्फों से खेलता, तेरी पलकों को चूमता
बस होते मैं और तुम, ये सारा जग सिमट आता
जीने देगी न ये दुनिया, यूँ ही बैठा रह जाऊं तो
अब और नहीं कर सकता देर, काश तुझे समझा पाता
और क्या मैं बतलाऊँ तुझे, तू तो ले जिद बैठी है
लगता है तुझे, जीवन बस इक पल में ही खप जाता
रूठी गुड़िया बस सुन ले इतना, तू ही है मेरा सब कुछ
होता न अगर ऐसा तो सपने न ये खुद को दिखलाता
कल हो अपना भी सुन्दर, सारी खुशियाँ हो क़दमों तेरे
बस इसलिए तेरे नैनों को आज किए हूँ नम जाता
ठहर जा दो पल को पगली, कुछ पल में ही, मैं हूँ आता...
- कुमार प्रकाश सिंह 'सूरज'
Es kavita ki pahli kuchh pantiyan yakinan achchhi lagin. Aap ek kavi ke rup me ubhar rahe hain, yah dekhna achchha lagta hai. Aap me kavitwa ka beej hai par use seenchne ki aavsyakta jaan parti hai. apne vichar aur prastuti me paripakwta laayein. Main yah kahna chahunga ki padhne ki aavsyakta jaan parti, Vicharo ko sahi disha aur uski sahi prastuti ke liye khub padhein.
ReplyDeleteDhanyavaad aapka, bahut dino baad aapka tavasar dekhne ka mauka mila...
ReplyDeleteJi jarur, mai aur padhne ki koshish karunga aur apni kala ko nikhaarne ka prayaash bhi... bas aap yun hi mera margdarshan karte rahein...
maine to jo mahsoos kiya likh diya. ab mujhme itni quwwat kahan ki dusron ka margdarshan kar sakun. Tathaiv apka zawab achcha laga
Delete