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Friday, December 16, 2011

अंतर्ध्वनि



दे मौका खुद को बिकने का इस बाज़ार में,
बड़ी ऊँची बोली लगाएगी जायेगी तेरी...


दिल तो बहुत कुछ कहता है कहने को, मगर कुछ दिया हुआ तेरा याद आ जाता है,
हमें तो नहीं पता क्या था वो, मगर सुना कई लोगो को उसे दर्द कहते हुए.


दिल खुश होने की सोंचता है कभी कभी,
तेरी यादें कह जाती हैं फिर कभी, फिर कभी.


हर एक को दिल देना चाहा सो इसके कई टुकरे हो गयें,
समेटना चाहा फिर से उन्हें, हर एक अब पत्थर हो गयें. 


दिल जीतना सिखा ना हमने, और दिल लुटाते चले गयें,
कुछ ने तो आहें भरी, बाकी रुलाते चले गयें.


सूरज की रौशनी मिलती है रोज आकर ज़मीन से
मगर तेरा मिलना कोहरे की ज्यादती हो जैसे.


दर्द दिखता नहीं दुखता है,
अश्क रुकता नहीं बहता है,
दिल को कोई और समझे कैसे,
ये तो खुद को नहीं समझता है.



बड़ी बेदर्द हैं ये सर्द हवाएं,
हम कसूरवारों को यूँ  ही छोर रखा है, 
और बेबसों का क़त्ल आजतक  करती आ रही है,
डराती है उन्हें, रुलाती है उन्हें,
बस ठिठुरा के कंपा जाती है हमें,
और नंगे शरीरो को हमेशा के लिए सुलाती रही है.


रौशनी के बहुत करीब जाया ना करो,
वो अँधेरे के सिवा कुछ नहीं देती...


हर मुस्कुराहट मेरे दर्द को छिपाना चाहती हैं
शायद तुम्हारे लिए कुछ ऐसे ही मुस्कुराता हूँ...



सिख ले ए दुनिया वालों इन परवानो से,
दो दिन की जिंदगी में भी मोहब्बत किया  करते हैं.


एक बार भी जो नींद आके मुझे चूम जाती,
ऐसा तेरे यादों के पहरों ने होने ना दिया.


दिन-ओ-दिन हो रहा हूँ किसी का दीवाना इस कदर,
ना तो असर है गुजरे वक़्त का ना ही फिक्र आने वाले मंजर का.


तुझसे मोहब्बत ना करने की लाख कोशिश की,
हर एक कोशिश ने कुछ और अंजाम दे दिया...


बड़ी तकलीफ होती है जब कोई सपनो में खो जाता है,
तू दिल तोड़ भी देगा तो क्या, मना लूँगा खुद को, सपने हकीकत नहीं होते...


हमारे इश्क का नगमा बड़ा अजीब है,
हर एक बोल कुछ गुनगुना जाते  हैं,
मगर आखरी कुछ गुमसुम से हैं...



                                                        -सूरज

2 comments:

  1. kaabiley taareef

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  2. आपका तह-ए-दिल से शुक्रियादा करता हूँ... मुझे और अच्छा लगता अगर आप अपना परिचय भी देते...

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