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Monday, August 25, 2014

जानती हो


जानती हो, बहुत कुछ है
जो कहना चाहता हूँ
शायद हर पल, यही सोचता हूँ
पर नही कहता, और कहूं भी ना
पर नही कहता, और कहूं भी ना


जानती हो, क्यों? नही पता!
सोचती होगी न जाने क्या क्या
क्या हुआ है, क्यों ऐसी ख़ामोशी है
पर समझ नही पाती, और समझो भी ना
पर कहता नही, और कहूं भी ना


जानती हो, डरता हूँ अब
कहने से उसे, जो तुम हो
बन जाता हूँ तुम, अब मै
और कह देता हूँ सब, तुमको,
पर नही कहता तुमको, और कहूं भी ना


जानती हो, प्यार अभी भी
तुमसे ही करता हूँ, करता रहूँगा
बस, एक और तु, जो मुझमे जीता है
पर नही कहता तुमको, और कहूं भी ना
... और कहूं भी ना



                            - कुमार प्रकाश सिहं 'सुरज'

Saturday, August 2, 2014

बादल




आसमां में देखता हूँ खुद को
बादलों से बन रहा हूँ
बन के है फिर बिखरना
फिर भी उभर रहा हूँ
फिर भी उभर रहा हूँ ...


समझूंगा मैं न कुछ भी
पर खुद को मौका दे रहा हूँ
खीच रहा है दिमाग ऐसे
जैसे सब खो रहा हूँ
फिर भी उभर रहा हूँ ...


इतर बितर छिटकना या जमना पसरना
वो बादल नहीं, मेरा है बिखरना
न हवाओं की गलती न मिज़ाज उनका
अपने गलतियों की सजा भुगत रहा हूँ
फिर भी उभर रहा हूँ...


हुआ मैं ओझल खुद की नजर से
पर है यकीं मैं  ज़िंदा अभी हूँ
बेअसर होंगी ये मौसम की अदाएं
तारों को अपना बिस्तर बना रहा हूँ
उभर फिर रहा हूँ, मै उभर रहा हूँ …


                                                -कुमार प्रकाश सिंह    'सूरज '