जानती हो, बहुत कुछ है
जो कहना चाहता हूँ
शायद हर पल, यही सोचता हूँ
पर नही कहता, और कहूं भी ना
पर नही कहता, और कहूं भी ना
जानती हो, क्यों? नही पता!
सोचती होगी न जाने क्या क्या
क्या हुआ है, क्यों ऐसी ख़ामोशी है
पर समझ नही पाती, और समझो भी ना
पर कहता नही, और कहूं भी ना
जानती हो, डरता हूँ अब
कहने से उसे, जो तुम हो
बन जाता हूँ तुम, अब मै
और कह देता हूँ सब, तुमको,
पर नही कहता तुमको, और कहूं भी ना
जानती हो, प्यार अभी भी
तुमसे ही करता हूँ, करता रहूँगा
बस, एक और तु, जो मुझमे जीता है
पर नही कहता तुमको, और कहूं भी ना
... और कहूं भी ना
- कुमार प्रकाश सिहं 'सुरज'