इश्क के बज़्म-ए-तरब* में ले आये हो मुझे,
अब बर्बादी पे हँसना सिखा दो ना सनम।
तू पास आ के यूँ दूर क्यों हैं,
दो कदम चलती क्यों नहीं...
तेरी जिद्द है तड़पाने की मुझको
या दूरियों से तुझे प्यार है...
या दूरियों से तुझे प्यार है...
दर्द के उस सफर में मै,
तेरा रास्ता था और तू मेरी मंजिल
मै अब तक हूँ बिछा पड़ा
तेरे क़दमों के निशाँ लिए हुए...
वादा-ए-वफ़ा था उसका की मुझे
उसके रहते कोई न दर्द दे पायेगा.बड़ी मोहब्बत थी दिल में उसके,
हर एक दर्द दे अपना वादा निभाया।
तू यूँ ही दर ब दर भटकता है,
तेरे सवाल में ही तो तेरा जवाब है
तू लाख भुला ले उसको
मगर ये बस तेरा ख़याल है|
नींद न भी आये उन्हें तो क्या,
जो जागना भूल गयें हैं,
आँखें बंद भी हो उनकी तो क्या,
जो देखना भूल गयें हैं।
दिखते हो फैयाज़* की तरह
चलते हो आलीम* की तरह
मिलते हो हमदर्द* की तरह
कहते हो वाइज़* की तरह
कभी मिल भी तो लो खुद से
ओ शहजाद-ए-तकब्बुर*
घुट घुट के मरते रहोगे
अपने ही लोगों की तरह...अब तलक क्या खोया क्या पाया
कब नफ्स* का जगना, कब सोना
क्या हिसाब लगाऊँ मैं इसका
बस कभी जीना हुआ, कभी मरना|
--कुमार प्रकाश सिंह 'सूरज'
*बज़्म-ए-तरब- Gathering of Hapiness
*फैयाज़- Munificent, Kind Hearted
*आलीम-Learned, Wise
*हमदर्द- Sympathetic
*वाइज़- Preacher
*शहजाद-ए-तकब्बुर- Arrogance, Loftiness
*नफ्स- Soul