Total Pageviews

Thursday, November 25, 2010

पुनर्जागरण



इस क्षणिक ख़ुशी की मोह में मैंने
मुंह कर्तव्यों से मोड़ लिया
जो पावन प्रण था मन में लिया
वह जीवन जीना छोड़ दिया॥


सुबह की बेला में सोकर
दिन अपना ही खुद से छीन लिया
अभी समय है बहुत, सोच
हर काम को कल पे छोड़ दिया॥


ऊँची इमारतों में जाकर मैं
आँगन के पेड़ को भूल गया
बाहर का कोलाहल सुनकर
चिड़ियों का चहकना भूल गया।।


झूठी सुन्दरता के भ्रम में
खुद को सवांरना छोड़ दिया
हर झूठ को सच कहता हूँ रहा
सच ने अब रिश्ता तोड़ लिया॥


लोगों की सुनते सुनते अब
खुद को ही सुनना छोड़ दिया
औरों में इतना उलझ गया
की आत्म विवेचन छोड़ दिया॥


गैरों से मिलते रहें हैं हम
अपनों को ही है भुला दिया
जीवन अपना अपनों का था
कलयुग ने, ये भी भुला दिया॥


भूल चुका था पावन प्रण मैं
फिर याद मुझे वह आया है
'सूरज' भूला था खुद के कर्म को
फिर याद मुझे नभ आया है॥


-सूरज


*(श्रीमान आदित्य भूषण मिश्र को सहृदय धन्यवाद, उनके मार्गदर्शन के बिना ये कविता किसी मूक व्यक्ति के स्वर की तरह होती॥)

Wednesday, November 24, 2010

एहसासात



हर पल रोना है तो इश्क कर के सीख ले,
गर हसना है तो इश्क में डूबे को देख ले।



क्यों नहीं समझते तुम इस शायर को,
इसे लिखने को कलम नहीं, एहसास चाहिए।



हम सिर्फ वो हर्फ़ नहीं उकेरते जिनमे गम हो,
हम भी प्यार के अफशाने लिखा करते हैं।



आप कहें तो हम खुद को हार दे आप पर,
आदत... मगर आदत अपनी हमें खुद से भी प्यारी है।




कुछ अजब सा है, कुछ अलग सा है,
हम भी न समझ सके की ये कैसा है?
हद तो तब हुई जब फिर कोशिश की समझने की,
तब जाना, ये न ऐसा  है न वैसा है, ये तो खुद सा है।





जीले खुदा के ग़लतफ़हमी में, ये तेरा तस्सवुर है,
खुद का खुदा बन कर जीना, ये मुझे मुकम्मल है।






वहां जा रहा हूँ या लौट रहा हूँ, ये बड़ी उलझन सी है,
हर बार जिस्म लौट आती है, पर रूह वहीँ छूट जाती है।





हर बार लौट आता हूँ इस रास्ते पे ख़ुशी के लिए,
अफसोश न तो ये रोक पाती है, न चलने देती है।







औरों को तो सिर्फ सुरूर है तेरा,
हम तो ताउम्र तेरी खुमारी में जियेंगे।
.
मत पूछ सुरूर है क्या,
वो तो निगाहों में रहता है
बस जान ले खुमारी को,
जो मेरी रूह में बसता है।






झूठ की कश्ती के सहारे हसीन वादियों में रह नहीं सकता,
उन वादियों में झूठ की उम्र नहीं, डूबना पड़ेगा एक दिन।






ये मोहब्बत भी क्या चीज है,
रुलाके अश्क सोख लेती है,
कहीं आने वाली हंसी फिसल न जाए।







भूलने को तो दूसरों की गलतियां हैं, टीस तो अपनों की गुस्ताखियाँ दे जाती हैं,
गर हो सके तो भूल जाना टीसते पलों को, हम तो उल्फत की जिन्दगानियां जीना चाहते हैं।










- सूरज

Sunday, September 5, 2010

है नहीं

दूँ  वो क्यों तुझे, जो तेरा है नहीं,
लूँ वो क्यों मैं, जो मेरा है नहीं,
समझूं वो क्यों तुझे, जो तु है नहीं,
समझाऊँ वो क्यों तुझे, जो मैं हूँ नहीं।


पुछूं वो क्यों मैं, जो मुझे पूछना नहीं,
जानू वो क्यों मैं, जो मुझे जानना नहीं,
करूँ वो क्यों मैं, जो मुझे करना नहीं,
क्यों देखूँ मैं उनके सपने जो अपना नहीं।



Monday, May 10, 2010

गुफ्तगू कभी उनसे कभी खुद से !!!



"उसने मुझे तबाह किया उसके बावजूद, उससे दो-चार दिन भी मैँ नफ़रत न कर सका"
- अल्वी


अए अल्वी तू क्या खूब दिल को पढ़ता था,
क्या होता जरा इस मर्ज की भी दवा बता जाता !!





घर से निकले तो हो, सोचा भी किधर जाओगे हर तरफ़ तेज़ हवाएं हैं, बिखर जाओगे ।
-- निदा फाजली




गर ये सोंच परिंदा निकले घर से
तो क्या वो वापस लौट पायेगा !!!



घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लेँ, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए!!!
-- निदा फाजली




दुसरों पे इनायत कर अए मुसाफिर अपने लिए कब तक चलेगा !!!






पागलों की न सुनो ए दुनिया वालों, कहीं तुम भी न अच्छे बन जाओ !!!




जिसकी जरुरत नहीं वो भी कर के देख ए मुसाफिर,
सफ़र का मजा तब और भी बढ़ जाएगा !!!




तू है पूरब मैं हूँ पश्चिम, लेकिन सूरज का आना जाना दोनों से हीं हैं !!!





क्या हुआ उन्हें जो दूर रह कर नब्ज सुन सकते थे,
उन्हें आज मेरी धड़कन समझ में ना आयी ।





हर बार उम्मीद किया करते हैं उनके चले जाने के बाद की वो आयेंगे,
काश अब वो लौट के ना आये, नहीं तो उम्मीद हीं करते करते मर जायेंगे ।





बहुत दिनों बाद, आज मेरे चेहरे पे हंसी आयी है,
यादों में जिनके खोया रहता था, आज खुद उनको मेरी याद आयी है।





जब से दूर होकर यादों में खोया उनके, तब से दुनिया की खबर न थी,
और आज जब याद किया खुद उन्होंने तो मुझे अपनी भी खबर न थी।





जब भी जी करे ओ मेहरबान हमें बुला लेना,
कोई बिता हुआ वक़्त नहीं जो लौट के ना आ सकूँ।





जब सताना हीं था मुझे, तो रूठने का बहाना क्यों किया,
इस झूठ के परदे को हटा कर, तुने मुझे रोने का बहाना क्यों दिया।







* मेरी क्रम रहित रचनाएँ
* उत्कृष्ट रचनाकारों की रचनाएँ
* मेरे पक्ष
* मेरी जिज्ञासा

जीने दे, मुझे जीने दे !!!


जीने दे, मुझे जीने दे, मुझे खुद की तरह से जीने दे,
पत्ते से टपकती बूंदे क्या कहती हैं, सुनने दे, मुझे सुनने दे,
बहती हवा क्या लेती हैं फुलों से, ज्ञात होने दे, मुझे ज्ञात होने दे,
सूरज की किरणें क्या दिखाती हैं, देखने दे, मुझे देखने दे,
जीने दे, मुझे जीने दे, मुझे खुद की तरह से जीने दे।

जला देने दे सब कुछ, आँसु के इक बूँद से,
सोख लेने दे मुझे, नीर आँसु के शैलाबों से,
तैरने दे मुझे, अपनी यादों के दरिये से,
उडने दे मुझे, सपनो के नीले आकाश से.
जीने दे, मुझे जीने दे, मुझे खुद की तरह से जीने दे।

जाने दे मुझे, तोड़ना है हर सिमाओं के तिलिस्म को,
करने दे मुझे, वो जो कोई और नही कर पाया है,
बहने दे मुझे, झुठलाना है साहिल के दिवारों को,
दिखलाने दे मुझे, वो जो कोई और दिखा न पाया है,
जीने दे, मुझे जीने दे, मुझे खुद की तरह से जीने दे।

लेने दे मजा मुझे, इन अयाशियों का,
देखने दे मुझे, अपने आंखों से इस जहाँ को,
रमने दे मुझे, इस नशीली मयक़दों मे,
समझने दे मुझे, खुद से इन फलसफों को,
जीने दे, मुझे जीने दे, मुझे खुद की तरह से जीने दे।

बोलने दे मुझे, अपने आंखों की बातों को,
लिखने दे मुझे, अपने दिल के नगमे को,
भुलने दे मुझे, अपने हर यादों को,
बसाने दे मुझे, अपने नये दुनिया को,
जीने दे, मुझे जीने दे, मुझे खुद की तरह से जीने दे॥

-- कुमार प्रकाश सिंह "सूरज"

Sunday, May 9, 2010

दो पंक्तियाँ हमारे भी !!!

मेरे तीरगी में होने का आलम तो देखो,
लोग दिल के दर्द को खेल कहते हैं।


जलने दो मुझे मेरे इश्क के आग में,
कोयला ये तपके कल कुंदन हो जायेगा।


अपनी जुदाई की जो दवा तूने लिखी थी,
जरुरत पड़ी आज उसकी,
कमबख्त मेरे जिंदगी से भी मंहगी  निकली!!!


तेरी हर बातें नशे की पुडिया सी थी,
आज जाना नशा करना, मेरी बुरी बला थी।


तू पास बैठ मरने की बात करती तो अच्छा लगता,
आज तू दूर जा रही है, जीना अच्छा नहीं लगता !!!


पैमाना-ए-मजा जो तेरे साथ का था,
उस से बड़ा तेरे गम-ए-जुदाई का है।


करना है तुझे, तो कर ले आज नफरत मुझसे,
नामों निशाँ मिटा दे अपने दिल से मेरा,
जानता हूँ, कल तेरी यादों में सिर्फ अक्स होगा मेरा,
लेकिन तब न होगा किसी को भी पता मेरा !!!