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Thursday, November 25, 2010

पुनर्जागरण



इस क्षणिक ख़ुशी की मोह में मैंने
मुंह कर्तव्यों से मोड़ लिया
जो पावन प्रण था मन में लिया
वह जीवन जीना छोड़ दिया॥


सुबह की बेला में सोकर
दिन अपना ही खुद से छीन लिया
अभी समय है बहुत, सोच
हर काम को कल पे छोड़ दिया॥


ऊँची इमारतों में जाकर मैं
आँगन के पेड़ को भूल गया
बाहर का कोलाहल सुनकर
चिड़ियों का चहकना भूल गया।।


झूठी सुन्दरता के भ्रम में
खुद को सवांरना छोड़ दिया
हर झूठ को सच कहता हूँ रहा
सच ने अब रिश्ता तोड़ लिया॥


लोगों की सुनते सुनते अब
खुद को ही सुनना छोड़ दिया
औरों में इतना उलझ गया
की आत्म विवेचन छोड़ दिया॥


गैरों से मिलते रहें हैं हम
अपनों को ही है भुला दिया
जीवन अपना अपनों का था
कलयुग ने, ये भी भुला दिया॥


भूल चुका था पावन प्रण मैं
फिर याद मुझे वह आया है
'सूरज' भूला था खुद के कर्म को
फिर याद मुझे नभ आया है॥


-सूरज


*(श्रीमान आदित्य भूषण मिश्र को सहृदय धन्यवाद, उनके मार्गदर्शन के बिना ये कविता किसी मूक व्यक्ति के स्वर की तरह होती॥)

6 comments:

  1. प्रथमतः एक सर्वथा अयोग्य व्यक्ति कि प्रशंसा के लिए धन्यवाद. असल परिश्रम तो आपका ही है, मैंने तो बस एक बने-बनाए व्यंजन में, ऊपर से कुछ डालकर उसी स्वाद में थोडा सा इजाफा करने कि कोशिश की है......
    .
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    एक अच्छा प्रयास....
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    परन्तु मैं फिर कहूँगा कि उच्चारण सम्बन्धी कुछ त्रुटियाँ अब भी रह गयीं हैं, मैं आपकी पहली कविता पर दिया गया सुझाव फिर दुहराता हूँ...."एक सुझाव यह है की पोस्ट करने से पहले एक बार preview देख लिया करें..कहीं-२ त्रुटियाँ रह जाती हैं......"

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  2. khoobsoorat...

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  3. aditya babu, kshma karein ki hamne aapke sujhav par amal nahi kiya. agli baar se puri koshish hogi ki aisi galti na ho !!!

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  4. @anonymous, dhanyavaad, lekin hame achcha lagta ki aap apna parichaye bhi dete !!!

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  5. Prashant Gautam11/26/10, 4:15 PM

    Is punarjagaran me mujhe kahin na kahin apni chavi prateet hoti hai...
    Aisa lagta hai mano meri hi kahani chal rhi ho...
    Aur fir ise padhne ke uprant swatah hi punarjagran ki lau shayad fir se jagrit ho uthi hai..
    Dhanyawad dena chahunga mujhe apni antaratma se punah awgat karane ke liye...
    Utkrisht prayas...

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  6. सच में शब्द नहीं है मेरे पास प्रशांत बाबू..... अगर सच कहूं तो मुझे कभी नहीं लगा था की आपके मुख से ऐसे शब्द मै कभी सुन पाउँगा....!!! अन्य लोग कोई उत्कृष्ट साहित्यिक रचना पढ़ कर भाव-विभोर हो जातें हैं, लेकिन मै आपके तबसर को पढ़ के हुआ हूँ.....!!!! धन्यवाद ... !!!

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