क्या कुछ लिख सकता हूँ आज?
चाह तो रहा, चाहता भी रहता हूँ
पर रुकता हूँ, रोकता हूँ खुद को
थोड़ा और जान लूँ,
थोड़ा और समझ लूँ
थोड़ा और जी लूँ,
यूं ही स्याही क्यों खर्चना
जब उठाऊं लिखने को कलम
तो हो ऐसा कि हो कुछ लिखने,
समझाने और जीने को
यूं ही पन्नों को दागदार क्यों करना
जब की रंग सकता हूँ इनको,
कई चेतन अवचेतन मन को
चलो कोई बात नहीं,
आज न सही फिर किसी दिन
लिखूंगा, रंगूंगा, थोड़ा सा और जी लूंगा।
- कुमार प्रकाश ' सूरज '
प्रेरणा: निशिता, अनुराग और एक कैन!
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